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Mohammad-Ali Jamalzadeh : Life & works

🧑‍🎓 1. प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

जन्म और प्रारंभिक परिवेश
मोहम्‍मद अली जमालज़ादेह का जन्म ईरान के इस्फहान शहर में था, और विभिन्न स्रोतों में यही तारीख़ ‎13 जनवरी 1892 बताई जाती है । एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्‍मे जमालज़ादेह ने विवादास्पद राजनीतिक पृष्ठभूमि प्राप्त की—उनके पिता सैय्यद जमाल अल‑दिन वाइज़, जो एक धर्मगुरु और संवैधानिक क्रांति के क्रांतिकारी वक्ता थे, 1908 में तख़्तापलट समर्थक दरबारियों द्वारा फांसी दी गई । उनका बचपन धार्मिक और राजनीतिक अस्थिरता के बीच गुज़रा, जिसने उनकी व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डाला।

शिक्षा और यूरोपीय अनुभव
12–13 वर्ष की उम्र में जमालज़ादेह ईरान छोड़कर लेबनान पहुंचे, जहाँ उन्होंने बर्करस्टर जीवन के बीच कैथोलिक स्कूल “एंतूरा” में शिक्षा प्राप्त की । उसके पश्चात 1910 के आसपास वे फ्रांस गए, जहाँ उन्होंने डिजाँ विश्वविद्यालय से कानून और बाद में स्विट्जरलैंड के लाॅज़ेन विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया ।

इन यूरोपीय अनुभवों से उन्हें न केवल भाषा और संस्कृति से परिचय मिला, बल्कि पश्चिमी सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण और शोध-पद्धतियों का भी ज्ञान हुआ, जो उनके बाद के लेखन और विचारों में स्पष्ट रूप से झलकता है।


🌍 2. राजनीतिक सक्रियता और प्रारंभिक लेखन

विश्व युद्ध और राजनीतिक प्रतिबद्धता
1915–16 के दौरान, जमालज़ादेह बर्लिन में बसे ईरानी राष्ट्रवादियों से जुड़े और उन्होंने वहां कावे (Kāveh) नामक प्रतिष्ठित प्रवासी पत्रिका के संपादक मंडल में स्थान प्राप्त किया (Wikipedia)। इसी दौरान उन्होंने बग़दाद में भी एक समाचार-पत्र “रास्ताख़िज़” (“उत्थान”) की स्थापना की ।

शैक्षिक शोध और “गंज‑ए‑शायेगान”
1916–21 के बीच उन्होंने शोधकर्म में पूर्ण लगाव दिखाते हुए ईरान की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आधारित “गंज‑ए‑शायेगान” (Ganj-e Shāyegān) नामक अध्ययन लिखा (Encyclopaedia Iranica)। यह यूरोपीय शोध-पद्धति अपनाने वाली पहली फारसी अकादमिक रचना थी, जिसे बाद में जर्मन में भी प्रकाशित किया गया लेकिन युद्ध की स्थितियों की वजह से वितरण रुक गया ।

स्टॉकहोम में प्रतिनिधित्व
1917 में, उन्होंने स्टॉकहोम में आयोजित विश्व समाजवादी कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ईरान की तरफ से किया, जिससे उनके विचारों में वैश्विक परिप्रेक्ष्य जुड़ा और उनमें आधुनिकता की रुचि स्पष्ट हुई ।


📚 3. साहित्यिक विरासत—पहला चरण (1915–1921)

Fārsi Shekar Ast (“फारसी शक्कर है”)

1916–21 के बीच लिखी गईं छह कहानियों में से यह सबसे महत्वपूर्ण है, पहली बार 1916–21 में प्रकाशित यागभा में, और बाद में 1921 में यकी बूद यकी नाबूद संग्रह का प्रख्यात उद्घाटन। यह कहानी संस्थापक मूर्त आलोचना के दृष्टिकोण से लिखी गई थी।

कहानी का मूल सार
एक फारसी छात्र बेरूत से फारसी भाषण देने जाता है, लेकिन वहां की भाषा-भाषियों—धार्मिक, आधुनिक, पारसी आदि—की बोलचाल में उलझ जाता है। अंततः वह यह सीखता है कि भाषा तभी “शक्कर” होती है जब वह सामान्य जन से जुड़ी और समझी जाए। यह कहानी सामाज, भाषा-संस्कृति और वर्ग-बिम्ब की सूक्ष्म व्यंग्यात्मक आलोचना है।

Yeki Bud Yeki Nabud (“एक था एक नहीं था”) – 1921

1921 में प्रकाशित यह छह कहानियों का संग्रह आधुनिक फारसी गद्य का पहला लक्षण माना जाता है। इसकी भाषा सरल, संवादवृत्त, लघु, और व्यंग्यपूर्ण थी, जिसे ईरानी आलोचकों ने यूरोपीय यथार्थवाद का परिचायक कहा ।

  • लेखक ने इस संग्रह की भूमिका में स्पष्ट रूप से कहा कि फारसी साहित्य में गद्य की संभावनाओं को बढ़ाना होगा—क्योंकि यह कविता जितना ही आवश्यक है और जन-भाषा और यथार्थ को समाहित करना चाहिए ।
  • इसके बाद इसे बर्लिन और तेहरान में प्रकाशित किया गया ।
  • संग्रह प्रकाशित होने के तुरंत बाद ही इसे धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा धार्मिक अपमान और भाषा के अपवर्गीकरण की धारणा के तहत तीखा विरोध झेलना पड़ा ।
  • परिणामस्वरूप जमालज़ादेह ने अगले 20 वर्षों तक ईरान में कोई साहित्यिक प्रकाशन नहीं किया ।

साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व
यह संग्रह एक गद्य-क्रांति का बियान था। परंपरागत कविता-प्रधान साहित्य से हटकर आम जन की भाषा, सामाजिक पृष्ठभूमि, हास्य और यथार्थवाद को प्रमुखता दी गई । इसने आगे चलकर ईरानी यथार्थवादी और आधुनिक लेखन (जैसे सादक हेदायत) को प्रेरित किया।


🚪 4. विरामकाल और अंतर्राष्ट्रीय लेखन (1921–1940)

1921–31 के दौरान जमालज़ादेह ने मुख्यतः साहित्य में सक्रियता बंद कर दी और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) के लिए जिनेवा में कार्यरत रहे । साथ ही वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ जिनेवा में फारसी पढ़ाने लगे। इस अवधि में उन्होंने केवल समय-समय पर ईरान का दौरा किया और साहित्यिक लेखन से दूर रहे।


✍️ 5. दूसरा साहित्यिक चरण (1940–1980): संरचनात्मक बदलाव

✨ प्रारंभिक वापसी: गद्य में पुनः गंभीरता

1940 के प्रारंभ में, जमालज़ादेह ने पुनः साहित्यों की ओर रुख किया। उन्होंने अनेक उपन्यास, लघुकथा संग्रह, सामाजिक-राजनीतिक निबंध, आत्मकथा, तथा अनुवाद प्रस्तुत किए।


📖 प्रमुख कृतियाँ

रचना (फारसी)वर्षहिंदी अर्थमुख्य विषय-वस्तु और शैली
Dar al‑Majanin1942“पागलों का घर”समाज और मानसिकता पर कटाक्ष, व्यंग्य
Qultashan‑e Divan1946“दिवान का संरक्षक”धार्मिक-राजनैतिक पाखण्ड की तीखी आलोचना
Rah‑yi Ab‑namah1947“आब‑नामा की कहानी”सरल भाषा, नैतिक और हास्य तत्वों वाला लेखन
Sahra-ye Mahshar1947“प्रलय का मैदान”रहस्यवाद, दार्शनिकता, संरचनात्मक ढीलापन
Talkh-o Shirin1955“कड़वा और मीठा”जीवन की द्विधा, संघर्ष और सामाजिक चेतना
Kohne va Now1959“पुराना और नया”पुरानी और नई दुनिया—समाज, संस्कृति का टकराव
Qair az Khoda Hichkas Nabud1961“ईश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं”आत्म-चिंतन, तर्क, दर्शन और भाषा में वैचारिक जाल
Asman-o Risman1965“नीला आकाश और रस्सी”मानव-ईश्वर संबंध, आध्यात्मिक व्यंग्य
Qesse‑ha‑ye Kutah…1974“दाढ़ी वाले बच्चों के लिए”व्यंग्य से भरी कहानियाँ—बड़ों को समझाने का प्रयास
Qesse-ye Ma be Akhar Rasid1979“तो हमारी कहानी खत्म हुई”आत्मकथा-प्रवृत्ति, जीवन की समापन-भावना

इसी दौर में जमालज़ादेह की रचनात्मकता में स्पष्ट बदलाव आया—शाब्दिक पुनरावृत्ति, दार्शनिकता, धार्मिक और नैतिक कथन, और रहस्यवादी स्वरूप, जिससे उनके प्रारंभिक चुस्त, व्यंग्यप्रधान शैली की बनावट कमजोर हुई—जिसे आलोचकों ने स्वीकारा (Wikipedia, Encyclopedia Britannica)।


🌐 6. भाषाई बहुता और अनुवाद कार्य

जमालज़ादेह केवल फारसी में ही नहीं, बल्कि फ्रेंच, जर्मन और अरबी भाषा में भी प्रवीण थे । वे इन भाषाओं से फारसी में कई प्रमुख कार्यों का अनुवाद करते रहे, जिसमें शिलर, मुलिएर, आइब्सन, और वान लून जैसी हस्तियों की कृतियाँ शामिल थीं ।

उनके इस अनुवाद कार्य से:

  • फारसी साहित्य में पश्चिमी विचार, नाटक, निबंध, और यथार्थवादी दृष्टिकोण आया।
  • फारसी पाठकों को अंतर्राष्ट्रीय साहित्य की गहरी समझ प्राप्त हुई।

🏆 7. अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और नोबेल नामांकन

जमालज़ादेह की रचनात्मकता को भले ही ईरान में प्रारंभ में प्रतिरोध मिला, लेकिन धीरे-धीरे साहित्यिक जगत में मान्यता बनी।

  • उन्हें 1965, 1967 और 1969 में तीन बार नोबेल साहित्य पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया – नामांकन करने वालों में प्रमुख ईरानी विद्वान रिचर्ड एन. फ्राई, एहसान यारशातर, और जेस पीटर ऐस्मुसेन शामिल थे ।
  • यह उनके वैश्विक साहित्यिक योगदान का प्रतीक था और उन्हें ईरानी साहित्य का एक महानांगर विचारक माना गया।

🌄 8. जीवन की अंतिम अवस्था और निरंतर प्रतिष्ठा

इस्लामी क्रांति (1979) के बाद जमालज़ादेह ने ईरान दौरा किया, लेकिन ज़्यादातर समय वे जिनेवा में ही रहे और 8 नवंबर 1997 को यहीं उनका निधन हुआ—उम्र 105 वर्ष ।

उनके निधन पर ईरान और यूरोप दोनों जगह साहित्य प्रेमियों द्वारा उन्हें “आधुनिक फारसी गद्य के पिता” के रूप में याद किया गया।


🔍 9. साहित्यिक और सांस्कृतिक छाप

✨ प्रारंभिक साहित्यिक क्रांति:

  • “Yeki Bud Yeki Nabud” ने फारसी भाषा में सरलता, लोकभाषा, और साहित्यिक यथार्थवाद को नया रूप दिया (Encyclopaedia Iranica)।
  • इसने आगे चलकर सादेक हेदायत, बोज़ोरग अलवी, और मिलाददान जैसे लेखकों की राह प्रशस्त की (Encyclopedia Britannica)।

🧩 समाज–राजनीतिक संवाद:

  • उनकी कहानियाँ धार्मिक पाखंड, राजनीतिक भ्रष्टाचार, और सामाजिक वर्ग भेद का व्यंग्य के माध्यम से विश्लेषण होती थीं — स्पष्ट और जनता के लिए समझने योग्य भाषा में ।

🌐 संस्कृति सेतु:

  • वह दो संस्कृतियों – ईरान और यूरोप – के मध्य सेतु बनने वाले एक लेखक थे ।
  • उनकी बहुभाषिक क्षमता और अनुवाद ने फारसी साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय विमर्श में प्रवेश कराया।

🧭 अंतिम चरण में आलोचना:

  • हालांकि 1940 के बाद उनकी लेखन शैली में यथार्थवाद, संरचनात्मक दृढ़ता, और व्यंग्यात्मक तीक्ष्णता क्यों नहीं थी, फिर भी उनका दार्शनिक, आध्यात्मिक, और वैचारीक दृष्टिकोण सामाजिक और साहित्यिक विमर्श को प्रभावित करता रहा ।

📝 10. निष्कर्ष

मोहम्‍मद अली जमालज़ादेह का जीवन और कृतियाँ हमें इतिहास की तीन प्रमुख क्षमताओं के दर्शन कराती हैं:

  1. भाषा और शैली में नवाचार — जन-भाषा और यथार्थवादी गद्य का अनूठा मिश्रण।
  2. सामाजिक और राजनीतिक आलोचना — व्यंग्य से उपजी तीखी पारदर्शिता।
  3. सांस्कृतिक संवाद — पारंपरिक ईरान और आधुनिक यूरोप के बीच विचारों की पुलक की भूमिका।

उनके फ़ारसी साहित्य पर अमिट छाप की वजह से वे हमेशा “आधुनिक फारसी गद्य” के पितामह कहलाएंगे। उनकी कहानियाँ और विचार आज़ भी फारसी भाषी दुनिया के साहित्यिक पाठ्यक्रम और अध्ययन का अभिन्न हिस्सा हैं।


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An activist by nature and educator by profession, have been working in the fields of health and education since 2016. I firmly believe that education is the only way through which one can reach, each and every destination one wants to reach. As Samuel Beckett says, "Ever tried, Ever failed. No matter. Try again, Fail again. Try better, Fail better." The one who tries, fails; and the one who fails, wins.

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